Mahadevi verma ka jivan parichay, Mhadevi verma sahityik parichya

जीवन परिचय-

Mahadevi verma ka jivan parichay:आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध महादेवी वर्मा का जन्म 24 मार्च 1907 ई को होली के दिन उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविंद सहाय इंदौर के एक कॉलेज में अध्यापक थे तथा माता हेमरानी सरल हृदय धर्म मर्यादा महिला थी महादेवी वर्मा बड़ी कुशाग्र बुद्धि बालिका थी और बचपन से ही मन से रामायण महाभारत की कथाएं सुनते रहने के कारण उनके मन में साहित्य के प्रति आकर्षण उत्पन्न हो गया था फलता मौलिक काव्य रचना इन्होंने बहुत छोटी आयु से प्रारंभ कर दी थी प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में मां करने के बाद यह प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्य हो गई नव वर्ष की छोटी उम्र में ही इनका विवाह रूप नारायण वर्मा के संग हो गया किंतु इन्हीं दिनों उनकी माता की मृत्यु हो गई उनके पति डॉक्टर थे परंतु दांपत्य जीवन में उनकी रुचि नहीं थी उनके जीवन पर महात्मा गांधी का और कला साहित्य साधना पर कवींद्र रवींद्र का प्रभाव पड़ा कुछ वर्षों तक महादेवी जी उत्तर प्रदेश विधान परिषद की मनोनीत सदस्य रही दर्शन संगीत तथा चित्रकला में इनकी विशेष अभिरुचि थी भारत सरकार ने इन्हें पद्म भूषण अलंकार से सम्मानित किया सन 1982 ईस्वी में महादेवी जी को उनके काव्य ग्रंथ यामाहा पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ इसी वर्ष उत्तर प्रदेश में ने इनको एक लाख रुपए का भारत भारतीय पुरस्कार देकर उनकी साहित्य सेवाओं का सम्मान किया यह प्रयाग महिला विद्यापीठ की उप कुलपति पद पर आसीन नहीं उनकी मृत्यु 11 सितंबर 1987 ई को हो गई|

साहित्यिक परिचय:

महादेवी वर्मा जी आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माता में महत्वपूर्ण स्थान की अधिकारिणी है प्रसाद ,पंत ,निराला तथा महादेवी वर्मा छायावादी युग के इन चार महान कवियों को बृहद चतुष्टय के नाम से जाना जाता है महादेवी वर्मा जी ने मैट्रिक उत्तरण करने के पश्चात ही काव्य रचना प्रारंभ कर दी थी जहां एक और उनके काव्य में इन भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई वहीं दूसरी ओर उनकी यह भावनाएं संपर्क में आने वाले पीड़ित एवं दुखी व्यक्तियों को भी प्रेम ,सहन भूत से प्रभावित करती रही इनकी प्रमुख रचनाएं हैं निहार, रश्मि ,नीरज ,चंद गीत, दीपशिखा, सप्तपर्णा ,यम तथा हिमालय, निहार महादेवी का प्रथम काव्य संग्रह है| इसमें 47 गीत वर्णित है|

भाषा शैली:

महादेवी वर्मा जी की प्रारंभिक काव्य रचनाएं ब्रजभाषा में ही हैं किंतु बाद में खड़ी बोली पर इन्होंने साहित्य सृजन केंद्रित किया इनकी खड़ी बोली शुद्ध, मधुर और कोमल है इसमें संस्कृत से तत्सम शब्दों की अधिकता है भाषा को मधुर और कोमल बनाने के लिए कहीं-कहीं शब्दों को परिवर्तित कर दिया गया है|

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